आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022
भाग-3
जंगल के पास से गुजरते नवविवाहित सिद्धार्थ और साधना के साथ घटी एक अजीब घटना जिसमें ड्राइवर की मौत हो गई एस टी डी बूथ पर लेकिन कुछ ही पल में ड्राइवर उस कार के ड्राइविंग सीट पर बैठा।सब कुछ असामान्य एक भयावह सपने सा ही लगा और दीपा की आवाज से दस साल पहले की यादों में पहुँच गया सिद्धार्थ जब यूनिवर्सिटी की कैंटीन में पहली बार दीपा को देखा।
***
"हैलो एवरी वन।"
दीपा ने एक हाथ सिद्धार्थ का पकड़ा हुआ था और दूसरा हाथ हवा में हिला रही थी। उसके दाँतो तले सिगरेट दबी हुई थी।
हाय हैलो हुआ सबका परिचय पूछा और फिर ठहाका मारकर हंँसने लगी।
"दिल्ली के चिड़ियाघर के आस पास मत जाना तुम लोग।"
"वहाँ के बारे में तो बहुत सुना है हम तो जरूर जाएंगे।"आंँख दबाते हुए अजय धीरे से बोला।
"फिर वापस अपने गाँव कभी ना जा पाओगे।" दीपा ने हंँसते कहा।
तभी राजेश बोला," अच्छा ऐसा क्या है यहाँ?"
"तुम सबको पकड़ कर वहीं रखे लेंगे।"
दीपा के कहते ही अजय व्यंग्यात्मक लहजे से बोला,"लगता है आप नहीं गई अब तक वहाँ? आप तो फाइनल इयर में हैं ना।"
सिद्धार्थ वैसे तो कोएड स्कूल से ही पढ़ा हुआ था पर इस तरह किसी लड़की ने उसका हाथ पहली बार पकड़ा था।पूरा शरीर रोमांचित हो गया। उसे तो लगा जैसे किसी फिल्म की शूटिंग चल रही है।
दीपा ने सिगरेट बुझा कर वहीं डस्टबिन में फैंक दी और उन्हीं के साथ बैठ गई।
"ठीक कहा अजय तुमने, मैंने सिर्फ सुना है वहाँ के बारे में, मैं कभी नहीं गई। मुझे तो यही जगह अपना ये यूनिवर्सिटी कैंपस और खासकर यह कैंटीन ही सबसे ज्यादा अच्छी लगती है।"
रोशन की आवाज में घबराहट साफ झलक रही थी, वह बोला,"एक बात पूछूं मैडम जी! यहाँ सारी लड़कियांँ ऐसे ही कपड़े पहन कर कॉलेज आती हैं क्या??और सभी..." कहते कहते वो रूक गया अजय ने उसका पैर अपने पैर से दबाते हुए उसके कान में फुसफुसाया "चुप कर।"
" मैडम जी..." रोशन की नकल करते हुए दीपा हंसी।
"हा हा.. सभी मेरी जैसी नहीं है यारों!ये शहर इतना भी बुरा नहीं है।
सभी मेरी जैसी नहीं है।"
दीपा की आवाज में दर्द साफ झलक रहा था ।उसकी बड़ी बड़ी आंखों के किनारे से टपके आँसू की एक बूंद को सिद्धार्थ ने देख लिया था।
इतनी बिंदास दिखने वाली लड़की के दुखी मन को भांपते चारों को देर नहीं लगी। लंच ब्रेक का समय पाँचों ने साथ बिताया और ढ़ेर सारी बातें की। फिर जैसे ही लंच ब्रेक खत्म हुआ वो चारों अपना बैग टांग कर उठने लगे और दीपा वहीं बैठी रही।
” कोई जरूरत पड़े तो मुझे ढूंढते हुए यहीं आ जाना।"
"क्यों आप क्लास में नहीं जाती क्या और घर भी नहीं जाती ? हमेशा यहीं कैंटीन में बैठी रहतीं हैं, आपका कोई घर नहीं है?" रोशन ने पूछा।
" बेटा जी! क्लासिस अभी शुरू नहीं हुई है और मैं यहीं होस्टल में रहती हूँ। वहाँ मन नहीं लगता तो यहीं आ जाती हूँ।"
"अच्छा अब हम चलते हैं। एडमिशन काउंटर खुल गया होगा।बस हमारा यहाँ एडमिशन हो जाए।"
" जरूर हो जाएगा 'मेरी जान ', घबराता क्यों है।कहा ना यहाँ सब मेरे जैसे नहीं हैं। फिर परसेंटेज अच्छी होगी तो बड़े आराम से हो जाएगा।" दीपा ने सिद्धार्थ का हाथ चूमते हुए कहा।
" हाँ जी इसका तो जरूर हो जाएगा, अपने जिले का टॉपर है।" अजय ने सिद्धार्थ की के कंधे पर धौल जमाते हुए कहा।
चारों कैंटिन से निकल कर एडमिशन काउंटर की तरफ तेज कदमों से चल रहे थे। सिद्धार्थ को तो जैसे तेज करेंट का तेज झटका लगा था।
" यार पहली बार ऐसी लड़की देखी है।इतनी बिंदास।पहली ही मुलाकात में..."
"तेरी तो किस्मत खुल गई यार!
शहर में पहला दिन और इतनी हॉट लड़की ने तेरे हाथ चूमें।" अजय ने उसके उसी हाथ को चूमते हुए कहा, जिसे थोड़ी देर पहले दीपा ने चूमा था।
रोशन जो हिन्दी मूवी शोले का जबरदस्त फैन था, बोला..
"ठाकुर ये हाथ मुझे दे दे।"
" हे भगवान सबको मेरा ही हाथ चाहिए।"
कुछ घंटों बाद सिद्धार्थ को छोड़कर सब थोड़ा उदास थे। पर थोड़ी ही देर में उदासी को एक तरफ पटक अपने मस्ती भरे मूड में आ गए। चलो हम चारों में से किसी एक का तो एडमिशन हो गया ।हम भी शान से कहेंगे हमारा दोस्त हैं इस कॉलेज में।
बस उसी का एडमिशन उस कॉलेज में हुआ था वो भी जो सब्जैक्ट वो सोच कर आया था कैमिस्ट्री। उसे कैमिस्ट्री ऑनर्स मिल गया था।
राजेश ने डिसाइड करते हुए कहा,"मैं तो इंग्लिश ऑनर्स ही कर लूंगा। साइंस बहुत पढ़ ली।"
"हाँ भई उससे मिलने के बाद तो हम सभी वही सब्जैक्ट पढ़ेंगे जो उसके हैं।"अजय ने चुटकी ली।
"ना जी हमारी तो इंग्लिश बहुत कमजोर है।हम तो सरकारी स्कूल से पढ़े हैं।वो तो माँ बाबूजी का सपना पूरा करने यहाँ आ गए।"
रोशन ने कहा तो अजय ने फिर चुटकी लेते हुए कहा,"अब हम अपने सपने पूरे करेंगे।खूब मौज मस्ती करेंगे। ये जवानी लौट के ना आनी।"
सिद्धार्थ को तो हॉस्टल मिल गया था पर बाकी तीनों के साथ सबसे बड़ी समस्या थी कहांँ रहेंगे।वापस अपने घर इस तरह हार कर नहीं लौटेंगे।अभी कई कॉलेजों में कोशिश करेंगे,जो विषय मिलेगा वही ले लेंगे पर अब दीपा से मिलने के बाद वो इसी शहर में रहना चाहते थे, भले उस जैसी बाकी लड़कियां नहीं हैं ।
चारों ने एक वादा किया, कुछ भी हो कहीं भी एडमिशन हो ना हो पर दिल्ली में साथ रहेंगे। हमेशा दोस्ती निभाएंगे।
सिद्धार्थ को अपने हॉस्टल में एडजस्ट करने में बड़ी।पढ़ाई शुरू हो गई थी।वो मन लगाकर पढ़ता था पर अपने दोस्तों को बहुत याद करता था। वैसे उसका ज्यादा तर समय लाईब्रेरी में ही बीतता था क्योंकि उसके रूम पार्टनर उसे अक्सर चिढ़ाते थे और उसका मजाक उड़ाते थे।
"पढ़ाकू बिहारी, कितना पढ़ेगा।"
जब चाय पीने के लिए कैंटीन जाता तो अपने दोस्तों और दीपा को बहुत मिस करता।
छह महीने बाद एक दिन जब वो स्टेशनरी की दुकान में खड़ा समान ले रहा था तभी उसे लगा पीछे से किसी ने एक मुक्का मारा।
क्रमशः
इस कहानी से जुड़े रहने के लिए मेरे प्रिय पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया। आप इसी तरह कहानी से जुड़े रहिए और अपनी समीक्षा के जरिए बताते रहिए कि आपको कहानी कैसी लग रही है।
***
कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी
##लेखनी धारावाहिक उपन्यास प्रतियोगिता
15.09.2022
दशला माथुर
20-Sep-2022 02:38 PM
Nice post
Reply
Gunjan Kamal
19-Sep-2022 12:20 PM
बेहतरीन भाग
Reply
Mithi . S
18-Sep-2022 04:42 PM
Bahut khub likha h
Reply